उत्तराखंड में भाजपा ने सत्ता में वापसी की किन्तु मुख्यमंत्री पुष्कर धामी स्वयं अपना चुनाव हार गए। सरकार बनने के बाद अब भाजपा के थिंक टैंक को पार्टी के अंदर छिपे विभीषणों को पहचान कर उन पर कार्यवाही करनी चाहिए नहीं तो यह लोग 2022 की तरह 2024 में भी भाजपा को नुकसान कर सकते हैं।
–अमित त्यागी
उत्तराखंड में पुष्कर धामी ने अपनी मेहनत और युवाओं के मध्य लोकप्रियता के चलते लगातार दूसरी बार भाजपा को सत्ता में पहुँचाया है। उत्तराखंड में किसी भी दल की सरकार की पुनरावृत्ति इसके पहले नही हुई है। यह धामी का जादू ही था जो उन्होंने आठ महीने पहले लगभग डगमगा चुकी भाजपा की कश्ती को न सिर्फ भंवर से बाहर निकाला बल्कि जीत के मुहाने तक पहुंचा दिया। भाजपा की इस जीत में धामी की खुद की खटीमा सीट भी कुर्बान हो गयी। भाजपा के अंदर चलने वाले घमासान एवं नेताओं के द्वारा रचित आंतरिक षड्यंत्र की बू खटीमा में साफ नजर आती है। उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार सत्तासीन होने का इतिहास रचने वाली भाजपा के अगुवा पुष्कर सिंह धामी अपनी सीट हारने के बावजूद एक बार फिर मुख्यमंत्री की कुर्सी हासिल कर बाजीगर तो साबित हुए हैं किन्तु अब 2024 के लिए भाजपा को अपने संगठन में भी कड़े कदम उठाने होंगे। उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जिसमे पर्यटन की अपार संभावनाएं हैं। सनातन संस्कृति से जुड़े कई महत्वपूर्ण तीर्थस्थल इस देव भूमि में हैं। प्रधानमंत्री मोदी की बाबा केदारनाथ में आस्था जगजाहिर है। बाबा काशी विश्वनाथ की भूमि से सांसद मोदी उत्तराखंड से अपना जुड़ाव अक्सर दिखाते रहते हैं। भारत के पर्यटन मानचित्र में उत्तराखंड भविष्य में उत्तर प्रदेश की तरह ही एक महत्वपूर्ण प्रदेश होने जा रहा है। यानि पर्यटन आधारित अर्थव्यवस्था में उत्तराखंड महत्वपूर्ण राज्य है। पर उत्तराखंड के साथ एक विडम्बना शुरू से रही है कि अपने निर्माण के आरंभिक समय से ही उत्तराखंड में राजनीतिक हलचल काफी तेज़ रही हैं।
यदि नारायण दत्त तिवारी के कार्यकाल को छोड़ दें तो दल चाहे कोई भी हो, उत्तराखंड के मुख्यमंत्री राजनीति का शिकार होते रहे हैं। 2017 में जब भाजपा की सरकार बनी तो त्रिवेन्द्र सिंह रावत भाजपा के शीर्ष नेतृत्व द्वारा मुख्यमंत्री बनाए गए। लगभग चार साल त्रिवेन्द्र सिंह रावत मुख्यमंत्री रहे। विधायको और संगठन से सामंजस्य न होने के कारण उनको हटा दिया गया। उनके स्थान पर फिर तीरथ सिंह रावत को भाजपा के केन्द्रीय नेतृत्व द्वारा मुख्यमंत्री बनाया गया। भाजपा का यह प्रयोग लगभग फ्लाप शो साबित हुआ। इसके बाद ऐसा लगने था कि भाजपा के लिए 2022 में जीत असंभव है। कांग्रेस के लोग धीरे धीरे अपनी जीत की संभावनाएं बढ़ती देख रहे थे। इसके बाद जब भाजपा ने युवा पुष्कर सिंह धामी के हाथ में कमान सौंपी तो प्रारम्भ में शायद भाजपा का थिंक टैंक भी 2022 की जीत के प्रति आश्वस्त नहीं था किन्तु जब धामी ने आते ही ताबड़तोड़ फैसले लेते हुये अपनी लोकप्रियता बढ़ानी शुरू की तो भाजपा के लिए संभावनाएं खुलनी शुरू हो गयी। धामी की बढ़ती लोकप्रियता के कारण उनके पूर्ववर्ती एवं भाजपा के कई वरिष्ठ कद्दावर अपनी ज़मीन खिसकती देखने लगे। उनकी भविष्य की संभावनाएं क्षीण होने लगीं। बस यहीं से भाजपा के अंदर कई कद्दावरों द्वारा 2022 को जीताने से ज़्यादा धामी को हराने की रूपरेखा शुरू हो गयी। चूंकि, धामी मोदी-शाह के करीबी माने जाते हैं इसलिए उनकी जीत के बाद किसी और के मुख्यमंत्री बनने की संभावनाएं न के बराबर थी। राजनाथ सिंह विधानसभा चुनाव से पहले धामी को धोनी की तरह ‘मैच फिनिशर’ तक बता चुके थे। इसके बाद जब उत्तराखंड में भाजपा की प्रचंड जीत के बाद पुष्कर धामी की हार हुयी तो कई षडयंत्रों की पर्ते खुल गईं।
भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष मदन कौशिक के खिलाफ तो वोटों की गिनती से पहले ही उनके गृह जनपद हरिद्वार समेत अन्य जगहों से पार्टी के प्रत्याशियों ने सार्वजनिक रूप से विरोध दर्ज कराना शुरू कर दिया था। पुष्कर धामी की खटीमा से हार को लेकर भी बड़ी चर्चाएं हैं। चुनाव परिणाम आने के बाद जब पुष्कर धामी खटीमा सीट से चुनाव हार गए तब पूर्व मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र रावत ने सार्वजनिक बयान दिया कि मुख्यमंत्री विधायकों के बीच से ही होना चाहिए। ऐसी चर्चा भी सुनी गयी थी कि भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के सामने त्रिवेंद्र रावत ने धामी के नाम पर अपना मुखर विरोध दर्ज कराया था। खैर, धामी की हार के बाद केन्द्रीय नेतृत्व ने उन पर अपना भरोसा जताया और उन्हे फिर से मुख्यमंत्री बना दिया गया। अब धामी को छह महीने में विधायक बनने की चुनौती है। भाजपा का शीर्ष नेतृत्व अलग अलग प्रदेशों में अगले दो दशकों के नेतृत्व तैयार करने की दिशा में काम कर रहा है। उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ और उत्तराखंड में पुष्कर धामी भाजपा की इस योजना में बिलकुल उपयुक्त दिखते हैं। भाजपा के स्थापित एवं पुराने नेताओं के लिये यह विषय उनके भविष्य के लिए चिंता का विषय बन गया है। अब 2022 के बाद जब भाजपा 2024 की तैयारी शुरू कर चुकी है तो उसे अपने अंदर के भीतरघातियों पर सख्त कदम उठाने ही होंगे। चूंकि अब मतदाता मोदी के केन्द्रीय नेतृत्व और राष्ट्रिय मुद्दों पर वोट देता है इसलिए भाजपा को कड़े कदम उठाने से परहेज भी नहीं करना चाहिए।
(विधि एवं प्रबंधन में परास्नातक लेखक वरिष्ठ स्तम्भकार एवं राजनीतिक विश्लेषक हैं। )