विजयदशमी का संदेश: प्रभु श्रीराम की रावण पर यह विजय धर्म की अधर्म एवं सत्य की असत्य पर विजय के रूप में स्थापित है

भारतीय परम्परा में विजयदशमी भगवान श्रीराम की लंका अधिपति रावण के ऊपर विजय के प्रतीक के रूप में लंबे कालखंड से मनाया जाने वाला उत्सव है। देश के लाखों स्थानों पर इस दिन मेघनाथ एवं कुम्भकर्ण सहित राक्षस रूपी रावण के पुतलो का दहन करने की परम्परा है । इसके पूर्व शारदीय नवरात्रि के प्रारंभ से रामलीला के मंचन की परंपरा भी है । । उत्तर से दक्षिण, पूर्व से पश्चिम मनाया जाने वाला यह उत्सव इसी संदेश को स्थापित करता है। उत्तर से दक्षिण को जोड़ने वाली श्रीराम की यात्रा देश में एकात्मता का निर्माण करती है।

विजयदशमी के पर्व पर शस्त्रों का पूजन, सीमाल्लंघन एवं नए कार्यों के शुभारंभ की परम्परा भी है। भारतीय संस्कृति में वीरत्व एवं पराक्रम भाव को सामाज में जागृत करने के लिए शस्त्र पूजन  का विशेष महत्व है। शस्त्र सन्नद्धता के इसी महत्व को प्रकट करने के लिए सभी देवी देवता अपने हाथ में शस्त्र धारण किए हुए हैं। धर्म संस्थापना के उद्देश्य से अवतरित धनुर्धर भगवान श्रीराम एवं श्री कृष्ण के सुदर्शन चक्र से सम्पूर्ण विश्व परिचित हैं। चाणक्य ने कहा कि “शस्त्रेंण रक्षिते राष्ट्रे, शास्त्र चिन्ता प्रवर्तते।” (शस्त्रों से सुसज्जित राष्ट्र में ही शास्त्रों की चिंता संभव है।) विश्व के श्रेष्ठतम ज्ञान की उदात्त धरोहर होने के बाद भी आवश्यक शस्त्र शक्ति न होने के कारण हमारी पराजय हुई, इसका इतिहास गवाह है। मुगल आक्रमणकारियों के आक्रमण से लेकर चीन के साथ हुए युद्ध इसी बात के साक्षी हैं।
 
1964 में भारतीय जनसंघ के पटना अधिवेशन में पंडित दीनदयाल उपाध्याय जी ने भारत परमाणु शक्ति से युक्त होना चाहिए, यह प्रस्ताव रखा था । अपने पड़ोसी देशों के शत्रुता पूर्ण व्यवहार को देखकर उन्होंने कहा था कि “भारत में सभी देवी देवता शस्त्रधारी हैं, धर्म संस्थापक भगवान श्री कृष्ण सुदर्शन चक्र धारी हैं तब भारत माता भी परमाणु बम धारी होनी चाहिए ।” 1974 में प्रथम परमाणु विस्फोट एवं प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेई जी के नेतृत्व में 1998 के द्वितीय परमाणु विस्फोट के बाद हम विश्व में परमाणु शक्ति से युक्त शक्तिशाली राष्ट्र बने । वर्तमान में प्रधानमंत्री मोदी जी के नेतृत्व में भारत आधुनिक सैन्य शक्ति से सुसज्जित हो रहा है । तीनों सेनाओं में समन्वय, राफेल, तेजस जैसे लड़ाकू विमान सेना को उपलब्ध कराना, आत्मनिर्भरता के माध्यम से स्वदेशी रक्षा शास्त्रों का निर्माण, रक्षा क्षेत्र में आयात निर्भरता से हटकर निर्यातक देश बनना, सैनिक कल्याण के अनेक निर्णयो ने सेना में विश्वास जगाया है। सीमा सुरक्षा के लिए आवश्यक कठोर निर्णय करके एवं सर्जिकल स्ट्राइक के माध्यम से हमने विश्व में एक संदेश भी छोड़ा है । सैन्य क्षेत्र की इस उपलब्धि के कारण दुनिया हमको जिम्मेदार एवं सम्मानित राष्ट्र के रूप में देख रही है। देश के समस्त नागरिकों को अपनी सुरक्षा की प्रति गंभीरता का होना भी आवश्यक है। सभी युवक एवं युवतियो में आत्मसुरक्षा के कुछ प्रयोग सीखने से उनमें भी आत्मविश्वास का संचार होगा। सजग रहते हुए हमको यह प्रयास आगे भी जारी रखने होंगे। शस्त्र पूजा का यही संदेश है।
 
विजयदशमी से पूर्व 9 दिन तक जगत -जननी आदिशक्ति मां के पूजन की परंपरा भी है। हमारे शास्त्रों में नारी शक्ति के महत्व को प्रकट करते हुए कहा है कि “यत्र नार्यस्तु पूज्यंते रमंते तत्र देवता:”। हमने स्त्री को पूजनीय मानकर देवी का रूप प्रदान किया । पतन अवस्था के कारण हमारे ही समाज में दासी जैसा व्यवहार भी देखने को मिला । समाज में मां की पूजा के अवसर पर यह संकल्प लेना होगा कि समाज में स्त्री को समान स्थान मिले। प्रगतिशीलता एवं आधुनिकता की होड़ में संस्कार का पक्ष पीछे न छूट जाए, इसका प्रयास करना होगा । भारत सहित संपूर्ण विश्व में नारी सशक्तिकरण के प्रयास चल रहे हैं । शिक्षा, आर्थिक एवं राजनीतिक क्षेत्र में समान भागीदारी, जागरूकता के प्रयास, तकनीकी ज्ञान, नौकरियों में समान अवसर सभी में समानता आवश्यक है। परिवार के निर्णयों में समान सहभागिता प्रकट होनी चाहिए । कुरीतियों से मुक्त समाज का वातावरण ऐसा निर्माण हो कि स्त्री कहीं भी किसी भी समय अपने को सुरक्षित अनुभव करे । कुदृष्टि रखने वालों पर कानूनी कठोर कार्यवाही आवश्यक है। ईरान, अफगानिस्तान सहित अनेक देशों में महिला स्वतंत्रता के लिए चलने वाले आंदोलन की सार्थकता सिद्ध होनी चाहिए। नारी शक्ति की प्रगतिशीलता की बात करने वाले संगठनों को इस विषय पर मौन होने के बजाय सक्रियता दिखानी चाहिए । प्रधानमंत्री सुकन्या समृद्धि जैसी केंद्र सरकार की योजना सराहनीय है। प्रधानमंत्री श्री नरेन्द्र मोदी सरकार का तीन तलाक पर निर्णय महिला सशक्तिकरण की सराहनीय पहल है । मां के प्रति श्रद्धा एवं सम्मान का भाव समाज में निर्माण करने से नव दुर्गा पूजा सार्थक होगी ।
 
नवदुर्गा में उपवास की परंपरा हमारे भक्ति भाव को प्रकट करती है। हमारी मान्यता है कि “भक्ति में ही शक्ति है।”  नए अन्न के आगमन से पूर्व व्रत रखकर शरीर को सिद्ध करना है यह औषधीय विज्ञान हैं। आंतरिक सुचिता शरीर के लिए आवश्यक है आंतरिक स्वच्छता बढ़ाते हुए शरीर की प्रतिरोधक क्षमता का विकास हमको अनेक रोगों से लड़ने का सामर्थ्य प्रदान करता है। जिसके कारण आत्म शक्ति का विकास होता है यह शक्ति ही हमको आंतरिक एवं बाह्य शत्रुओं से लड़ने की सामर्थ प्रदान करती है। लोकतंत्र में जन शक्ति ही वास्तविक शक्ति है। वनवासी समाज को साथ लेकर रावण पर विजय का संदेश स्वीकार करते हुए हमें समाज के झुग्गी, झोपड़ी, ग्रामों एवं वनवासी क्षेत्रों में रहने वाले पिछड़े, गरीब समाज की सुप्त शक्ति को जागृत करना होगा । समाज को तोड़ने वाले विध्वंसक तत्वों को परास्त करना होगा । एकता एवं एकजुटता का भाव जागृत करते हुए सर्वत्र भारत माता के जय के उद्घोष को जगाना होगा । समरस, जागरूक सक्रिय समाज शक्ति ही देश की आधार शक्ति बनेगी ।

धर्म की अधर्म पर, सत्य की असत्य पर, मानवता की दानवता पर विजय का यह सिद्धांत ही हमारी संस्कृति का मूल तत्व है । “सत्यमेव जयते” के रूप में मुखरित होने वाला मंत्र ही हमारी प्रेरणा है । अपनी संस्कृति का गौरव एवं स्वाभिमान लेकर हम भारत की शक्ति का जागरण करते हुए विश्वकल्याण में रत हो, यह विजयदशमी का संदेश है ।

शिवप्रकाश
(राष्ट्रीय सह संगठन महामंत्री, भाजपा)

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *