यूं तो देश का एक बड़ा हिस्सा औपनिवेशिक ब्रिटिश हुकूमत की दमनकारी नीति से त्रस्त था ही, लेकिन देशी रियासतों के नवाबों और राजाओं ने भी जनता पर दमन और शोषण का कहर ढा रखा था। जब युद्ध के बहाने भारत देश की अभावग्रस्त प्रजा को लूटा जा रहा था, ऐसे समय में उत्तराखंड राज्य में जन्म लिया था बालक श्री दत्त ने, जो बाद में श्री देव सुमन के नाम से जाने गए।
श्रीदेव सुमन (मूल नाम श्रीदत्त बडोनी) को टिहरी रियासत और अंग्रेजों के अत्याचारों के खिलाफ जनक्रान्ति कर अपने प्राणों का बलिदान करने के लिए याद किया जाता है। 25 मई को श्री देवसुमन की पुण्यतिथि है। उनके बलिदान दिवस को उत्तराखंड राज्य में ‘सुमन दिवस’ के रूप में मनाया जाता है।
84 दिनों की लंबी भूख हड़ताल के शहीद श्री देव सुमन का टिहरी रियासत के बमुण्ड पट्टी के जौल गांव में 25 मई 1916 को हरिराम समाज सेवी के घर में जन्म हुआ था। 1919 की हैजा महामारी में पिता चले गए। टिहरी से मिडिल पास किया। 1932 में देहरादून में अध्यापक बने।
ब्रिटिश हुकूमत और टिहरी की अलोकतांत्रिक राजशाही के खिलाफ लगातार आन्दोलन कर रहे, श्रीदेव सुमन को दिसंबर, 1943 को टिहरी की जेल में नरकीय जीवन भोगने के लिए डाल दिया गया था। झूठे गवाहों के जरिए उन पर मुकदमा चलाया गया। इसी दौरान मुक़दमे की पैरवी करते हुए श्रीदेव सुमन ने कहा था- “हाँ, मैंने प्रजा के खिलाफ लागू काले कानूनों और नीतियों का हमेशा विरोध किया है। मैं इसे प्रजा का जन्मसिद्ध अधिकार मानता हूँ।”
मात्र 29 की अवस्था में ही जनता के लिए प्रजामण्डल की स्थापना की माँग करने के कारण अपनी ही रियासत के राजाओं द्वारा प्रताड़ना और क्रूरतापूर्ण शोषण के बाद प्राण त्यागने वाले श्रीदेव सुमन की कहानी सरदार भगत सिंह के बलिदान से कम नहीं है। श्रीदेव सुमन के व्यक्तित्व में कई महापुरुषों की झलक थी। वे बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे। रियासत के खिलाफ श्रीदेव सुमन के विरोध में यदि भगत सिंह का जूनून नजर आता था, तो दूसरी ओर वे महात्मा गांधी के विचारों से भी प्रभावित थे। सुमन एक श्रेष्ठ लेखक और साहित्यकार भी थे। उन्होंने पंजाब विश्विद्यालय से रत्न भूषण, प्रभाकर और बाद में विशारद और साहित्य रत्न की परीक्षाएं पास कीं थी। सुमन ने दिल्ली में देवनागिरी महाविद्यालय की स्थापना की और कविताएं भी लिखने लगे। वर्ष 1937 में ‘सुमन सौरभ’ नाम से अपनी कविताएं भी प्रकाशित करवाईं। इसी दौरान वे पत्रकारिता के क्षेत्र में भी सक्रिय रहे।
अपने शरीर के कण-कण के नष्ट हो जाने पर भी टिहरी के नागरिक अधिकारों के लिए लड़ने का दम भरने वाले श्रीदेव सुमन ने अपने इस संकल्प को निभाया भी। उत्तराखंड के निर्माण में श्रीदेव सुमन जैसे अमर बलिदानियों का सबसे बड़ा योगदान रहा है। यह देवभूमि के साथ ही नायकों की भूमि भी है, जिन्होंने समय-समय पर अपने रक्त और बलिदान के उदाहरण पेश कर उत्तराखंड के इतिहास को गौरवशाली बनाया है।
श्रीदेव सुमन जयंती की सभी प्रदेशवासियों को हार्दिक शुभकामनाऐं!