उत्तराखंड की पावन भूमि पर ढेर सारे पावन मंदिर और स्थल हैं जहां पहुंचते ही असीम शांति का अनुभव होता है। मां दुर्गा के शक्तिपीठों के अलावा उत्तराखंड में मां के इन मंदिरों का भी खास महत्व है। यहां हजारों साल से मां दुर्गा की पूजा-उपासना की जाती है। वहीं प्रदेश में धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए राज्य सरकार की ओर से मां भगवती के मंदिरों का सर्किट बनाया गया है।
7 अक्टूबर 2021 से देश भर में शारदीय नवरात्रि की शुरुआत हो चुकी है। दुर्गा सप्तशती और देवी भागवत पुराण में बताया गया है कि नवरात्रि का महापर्व सांसारिक कामनाओं की पूर्ति करने वाला है। नवरात्रि के 9 दिनों में देवी मां की साधना से सभी प्रकार की सांसारिक कामनाएं पूरी होती हैं। मां की साधना से सभी प्रकार की सांसारिक कामनाएं पूरी होती हैं। मां की साधना से यश, सम्मान, धन, बल, आरोग्य आदि की प्राप्ति होती है।
धार्मिक पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए उत्तराखंड सरकार की ओर से मां भगवती के 24 मंदिरों के समूहों का सर्किट तैयार किया गया है। इसमें 12 मंदिर गढ़वाल मंडल और 12 मंदिर कुमाऊं मंडल से लिए गए हैं। साथ ही पर्यटकों की सुविधा को ध्यान में रखते हुए मंदिर परिसर में बैठने, पानी, शौचालय, बिजली समेत अन्य जरूरी सुविधाओं को शामिल किया गया है।
इस लेख के माध्यम से हम आपके साथ भगवती सर्किट के मंदिरों की जानकारी साझा कर रहे हैं।
कालीमंठ मंदिर, रुद्रप्रयाग- रुद्रप्रयाग जिले में स्थित कालीमठ मंदिर को महालक्ष्मी, महासरस्वती और महाकाली सिद्धपीठ के रूप में जाना जाता है। इस स्थान का वर्णन दुर्गा सप्तशती में भी है।
कालिंका माता, बीरोंखाल, पौड़ी गढ़वाल- पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित कालिंका माता मंदिर को मां काली का स्वरूप माना जाता है। यहां हर 3 साल में सर्दियों के मौसम प्रसिद्ध मेले का आयोजन किया जाता है।
मनसा देवी मंदिर, हरिद्वार- मनसा देवी को भगवान शिव की मानस पुत्री के रूप में पूजा जाता है। इनका प्रादुर्भाव मस्तक से हुआ है। जिसके चलते इनका नाम मनसा पड़ा। इन्हें नागराज वासुकी की बहन के रूप में भी पूजा जाता है।
चण्डी देवी, हरिद्वार- देश के प्रसिद्ध धार्मिक स्थलों में शामिल चण्डी देवी मंदिर नील पर्वत के शिखर पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठों में से एक है। मान्यता है कि इस मंदिर की मूर्ति को महान संत आदि शंकराचार्य ने आठवीं शताब्दी में स्थापित किया था।
कुन्जापुरी देवी मंदिर, नरेंद्र नगर- ऋषिकेश से लगभग 25 किमी दूरी पर स्थित कुन्जापुरी देवी मंदिर महत्वपूर्ण देवी सती को समर्पित है। मान्यता है कि यहां माता सती के शरीर का ऊपरी भाग गिरा था।
सुरकंडा देवी मंदिर- सुरकंडा देवी मंदिर, कद्दूखाल, टिहरीसुरकंडा देवी मंदिर टिहरी क्षेत्र में सुरकुट पर्वत पर लगभग 2757 मीटर की ऊंचाई पर स्थित है। यह प्रसिद्ध शक्तिपीठ में से एक है।
चंद्रबनी मंदिर, देवप्रयाग- देवप्रयाग से 33 किमी और कन्डीखाल से 10 किमी दूर स्थित मां चन्द्रबदनी मंदिर शक्तिपीठों और माता सती के पवित्र स्थलों में से एक है। यह शक्तिपीठ चंद्रकूट पर्वत के ऊपर स्थित है।
नागणी देवी, उत्तरकाशी- बालखिला पर्वत पर बसे नागणी देवी मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। मान्यता है कि मां नागणी के दर्शन से मनुष्य को सात जन्मों के पापों से मुुक्ति मिलती है। नवरात्र के दिनों में यहां श्रद्धालुओं का तांता लगा रहता है।
ज्वालपा देवी मंदिर- ज्वालपा देवी मंदिर, सतपुलीनबालिका नदी के किनारे स्थित ज्वालपा देवी मंदिर लगभग 350 मीटर के क्षेत्र में फैला हुआ है। नवरात्रि के दौरान इस मंदिर में विशेष उत्सव का आयोजन होता है।
नंदा देवी मंदिर, कुरुड़ (चमोली)- कुरुड़ में नंदा देवी का मंदिर गांव के शीर्ष पर देवसरि तोक पर स्थित है। कुरुड़ नंदा को राजराजेश्वरी के नाम से भी पुकारा जाता है।
हरियाली देवी मंदिर, रुद्रप्रयाग- रुद्रप्रयाग का मां हरियाली देवी मंदिर विशाल हिमालयन श्रेणियों के बीच स्थित है। प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक इस मंदिर की देवी को सीता माता, बाला देवी और वैष्णों देवी के नाम से भी जाना जाता है।
धारी देवी मंदिर, श्रीनगर- अलकनन्दा नदी के तट पर स्थित मां धारी देवी मंदिर एक प्राचीन सिद्धपीठ है। माता धारी देवी को देवभूमि उत्तराखंड की रक्षक देवी के रूप में जाना जाता है।
हाटकालिका मंदिर, गंगोलीहाट- माता भगवती महाकालिका का यह दरबार दिव्य चमत्कारों से भरा पड़ा है। कहा जाता है कि जो भी भक्तजन श्रद्धापूर्वक महाकाली के चरणों में आराधना के पुष्प अर्पित करता है उसके रोग, शोक, दरिद्रता एवं विपदाएं दूर हो जाती हैं।
पूर्णागिरि मंदिर, टनकपुर- प्रसिद्ध सिद्धपीठों में से एक माँ पूर्णागिरि मंदिर टनकपुर से लगभग 21 किमी की दूरी पर स्थित है। चैत्र नवरात्रि के दौरान बड़ी संख्या में भक्त यहां दर्शन के लिए आते हैं।
वाराही मंदिर, देवी- धुराचंपावत जिले के देवीधुरा में माँ वाराही देवी के मंदिर के प्रांगण में हर साल रक्षाबंधन के अवसर पर श्रावणी पूर्णिमा को ‘बग्वाल’ खेली जाती है।
नैना देवी मंदिर, नैनीताल- नैना दिवी मंदिर नैनीताल में नैनी झील के उत्तरी किनारे पर स्थित है। यहाँ सती के शक्ति रूप की पूजा की जाती है। मंदिर में दो नेत्र हैं जो नैना देवी को दर्शाते हैं।
गर्जिया देवी मंदिर, गर्जिया (नैनीताल)- गर्जिया देवी मंदिर माता पार्वती के प्रमुख मंदिरों में से एक है। यह मंदिर भक्तों की श्रद्धा एवं विश्वास के साथ खूबसूरत वातावरण, शांति एवं रमणीयता के लिए जाना जाता है।
कोटगाड़ी (कोकिला) देवी मंदिर, पिथौरागढ़- थल से 9 किमी की दूरी पर स्थित कोटगाड़ी देवी मंदिर एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल है। इस मंदिर की मान्यता ‘अंतिम दिव्य अदालत’ के रूप में है, जहाँ वंचित भक्त भगवान से अपनी इच्छाओं को पूरा करने की प्रार्थना करने आते हैं।
कोट भ्रामरी मंदिर, बागेश्वर- कोट भ्रामरी मंदिर को भ्रामरी देवी मंदिर और कोट माई नाम से भी जाना जाता है। यह बैजनाथ से 3 किमी की दूरी पर डंगोली के समीप स्थित है।
चैती (बाल सुंदरी) मंदिर, काशीपुर- माता चैती (बाल सुंदरी) मंदिर काशीपुर में स्थित है। यहां चैती मेला के नाम से चैत्र मास में प्रसिद्ध मेला लगता है। आदिशक्ति की बाल रूप में पूजा होने के कारण इसे बाल सुंदरी मंदिर कहा जाता है।
नंदा देवी मंदिर, अल्मोड़ा- कुमाऊँ क्षेत्र के पवित्र स्थलों में से एक नंदा देवी मंदिर का विशेष धार्मिक महत्व है। इसका इतिहास 1000 साल से भी ज्याद पुराना है। कुमाऊँनी शिल्पविद्या शैली से निर्मित यह मंदिर चंद्र वंश की ईष्ट देवी को समर्पित है।
कसार देवी मंदिर, अल्मोड़ा- अल्मोड़ा में कसार पर्वत पर स्थित कसार देवी मंदिर अद्वितीय और चुंबकीय शक्ति का केंद्र है। कहा जाता है कि इस शक्तिपीठ में माँ दुर्गा साक्षात् प्रकट हुई थी।
दूनागिरी मंदिर, द्वाराहाट- माँ दूनागिरि मंदिर द्वाराहाट से करीब 14 किमी की दूरी पर स्थित है। इस भव्य मंदिर में माँ दूनागिरी वैष्णवी रूप में पूजी जाती हैं।
अखिलतारणी मंदिर, लोहाघाट, चम्पावत- माँ अखिलतारणी मंदिर को उप शक्तिपीठ माना जाता है जो घने हरे देवदार वनों के बीच में स्थित है। मान्यता के अनुसार यहां पांडवों ने घटोत्कच का सिर पाने के लिए माँ भगवती की प्रार्थना की थी।