ऑनलाइन पढ़ाई ने बच्चों के हाथों में मोबाईल फ़ोन थमा दिया और मोबाईल फ़ोन ने बच्चों के लिए सोशल मीडिया के दरवाज़े खोल दिये, बच्चों को मोबाइल पर चल रही ऑनलाइन कक्षाओं में विज्ञान या भूगोल बेशक समझ न आये परन्तु इंस्टाग्राम व फेसबुक सही ढंग से समझ आने लगे हैं और अभिभावकों को इस बात का तनिक भी अहसास नहीं हो पाया कि उनके बच्चों के लिए ऑनलाइन परीक्षाओं में अधिक अंक अर्जित करने से अधिक इंस्टाग्राम पर फॉलोवर की संख्या बढ़ाना अधिक महत्वपूर्ण हो गया है।
अभिभावकों द्वारा अपने बच्चों के हाथों में मोबाइल थमा देने से अपने आप से बहुत दूर कर दिया है। इतना दूर कि वो कभी भी आपको छोड़कर जा सकते हैं। ऐसी ही एक घटना कुछ दिन पूर्व द्वाराहाट में घटी। जिन्हें हम लव-जेहाद का नाम दे रहे हैं मोबाइल तक बच्चों की इसी असीमित पहुँच का ही परिणाम हैं। अभी हमें भविष्य में इस प्रकार की असीमित घटनाओं के लिए तैयार रहना है, तब तक तैयार रहना है जब तक हमारा नम्बर न आ जाये। अभियुक्तों और पीड़िता के इंस्टाग्राम अकांउट को चौबीस घंटों तक खंगालते के पश्चात इस निष्कर्ष पर पहुँचना ज़रा भी मुश्किल नहीं है कि शार्ट विडियो डालकर उसे टेªंड करवाने का संक्रमण पहाड़ों में बुरी तरह फैल चुका है और फॉलोवर बढ़वाने का कच्चा लालच पहाड़ के बच्चों को जिहादियों के संपर्क में ला रहा है ।
द्वाराहाट वाली बच्ची मोबाईल मिलने के 20-25 दिनों के पश्चात ही घर से ग़ायब हो गई नतीजन उसकी माँ को भी लोक लाज के कारण अपना गाँव छोड़ना पड़ा, समाज सब कुछ जानकर भी इस घटना से अनजान रहा, बग्वालीपोखर वाली बच्ची ग़ायब होने से बच गई। सौभाग्यवश अभियुक्त क्षेत्रीय जनता की पकड़ में आ गये और फ़िलहाल जेल में हैं। अभियुक्त बग्वालीपोखर से कम से कम तीन सौ किलोमीटर दूर के रहने वाले हैं, वो इंस्टाग्राम के माध्यम से बालिका के संपर्क में आये। बालिका और अभियुक्तों के इंस्टाग्राम पर एक से अधिक अकाउंट हैं और सभी के बारह हज़ार से अधिक फॉलोवर्स हैं, यहाँ पर ये भी महत्वपूर्ण है कि अधिकतर फॉलोवर्स मुस्लिम हैं और इस कहानी का सबसे ख़तरनाक पहलू यह है कि अभी क्षेत्र की अन्य बालिकाएँ भी इंस्टाग्राम व अन्य सोशल मीडिया के माध्यम से उनसे और उनके साथियों के संपर्क में हैं, मतलब भविष्य में भी इस प्रकार की घटनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता है।
सभी कुछ एक सुनियोजित तरीक़े से किया जा रहा है, पहले पहाड़ों में सॉफ्ट टारगेट खोजे जा रहे हैं और फिर हमला किया जा रहा है, पहाड़ वालों की हालत इतनी पतली हो गई है कि वो खुद को सॉफ्ट टारगेट बनने से नहीं रोक पा रहे हैं। ग़ज़ब की बात है कि लड़की के ग़ायब होने से पहले तक माँ-बाप, भाई-बहन, शिक्षक-दोस्त, चाचा-ताऊ, आस-पड़ोस में किसी को भी सोशल मीडिया पर पोस्ट करने वाली बालिका की गतिविधियाँ संदिग्ध नहीं लगती, तीन सौ किलोमीटर दूर से आये जिहादियों की गतिविधियाँ संदिग्ध नहीं लगती, आसपास के जिहादियों की गतिविधियां संदिग्ध नहीं लगती लेकिन बालिका के ग़ायब हो जाने के पश्चात एकाएक सभी कुछ संदिग्ध लगने लगता हैं।
बाघ के बकरियों को उठाकर ले जाने पर भी दुख होता है लेकिन अफ़सोस है क्षेत्र की बेटियों के उठ जाने पर किसी को कोई दुख नहीं है, हम थोड़ा सा जागरूक होने और जागरूक करने में भी कष्ट का अनुभव करने लग गये हैं, हम सभी समाज में रहकर अपनी-अपनी जिम्मेदारियों से बच रहे हैं। अगर ऐसा ही चलता रहा तो किसी दिन जागते रहो कहने वाले भी चुप हो जाएँगे, बहुत आसान है अपनी बेटियों को दोष देना और ये आसान काम बाद में भी किया जा सकता है, पहले अपनी मेहनत से खड़ी फसल को खोद रहे सुअरों को तो ढेर कर लें ।
लेख-हीरा सिंह अधिकारी