दिल की सेहत – रोज़ की ज़िम्मेदारी, न कि केवल एक विकल्प- डॉ. गगन जैन, डीएम कार्डियोलॉजी

देहरादून। उत्तराखंड के विशेषज्ञ चेतावनी दे रहे हैं कि हृदय रोगों का बोझ इलाज की कमी से नहीं, बल्कि रोज़मर्रा की आदतों से बढ़ रहा है। डॉक्टरों का कहना है कि दिल की सुरक्षा अस्पतालों में नहीं, बल्कि रसोई, कार्यस्थल और जीवनशैली की छोटी-छोटी आदतों में छिपी है। देहरादून और उत्तराखंड के कई व हिस्सों में खाने-पीने के तौर-तरीके बदल गए हैं। तैलीय और पैकेट वाले खाद्य पदार्थ, मीठे पेय, तंबाकू और शराब का सेवन, लंबे समय तक बैठे रहना और तनावपूर्ण दिनचर्या ये सभी धीरे-धीरे दिल को कमजोर कर रहे हैं। नियमित स्वास्थ्य जांच की अनदेखी समस्या को और गंभीर बना रही है।

डॉ. गगन जैन, डीएम कार्डियोलॉजी, मेडिट्रीना हार्ट सेंटर, कोरोनेशन अस्पताल, देहरादून, कहते हैं- हमारा दिल कभी भी इतनी दबाव झेलने के लिए नहीं बना था। नमक और चीनी की अधिकता, बार-बार धूम्रपान या शराब का सेवन, घंटों तक डेस्क पर बैठे रहना और लगातार तनाव ये सभी आदतें धीरे-धीरे दिल को खोखला करती हैं। लोग सोचते हैं कि दिल की बीमारी अचानक दिल का दौरा बनकर आती है, लेकिन सच्चाई यह है कि यह सालों की लापरवाही का परिणाम होती है। रोकथाम कोई कठिन काम नहीं है थाली में पर्याप्त फल, सब्ज़ियाँ, दालें और अनाज शामिल करना, रोज़ 30 मिनट पैदल चलना या योग करना, सही नींद लेना और हानिकारक आदतों से दूरी बनाना दिल की बीमारी का खतरा आधा कर सकता है। अगर हम समय रहते सतर्क हो जाएँ तो न सिर्फ बीमारियों से बच सकते हैं बल्कि अपनी उत्पादक उम्र भी बढ़ा सकते हैं, परिवार को सुरक्षित रख सकते हैं और अस्पतालों पर बढ़ते बोझ को कम कर सकते हैं। दिल की सेहत को कभी-कभार की प्राथमिकता नहीं क बल्कि रोज़ की जिम्मेदारी समझना होगा। उत्तराखंड जैसे राज्य के लिए यह चेतावनी और भी महत्वपूर्ण है, जहाँ आधुनिक जीवनशैली और पारंपरिक आदतें मिलकर एक खतरनाक स्थिति बना रही हैं। डॉक्टरों का कहना है कि हर छोटा कदम चाहे वह खाने की थाली में बदलाव हो, चलने-फिरने की आदत हो या तनाव को नियंत्रित करने की कोशिश तय करता है कि दिल मज़बूत रहेगा या समय से पहले थक जाएगा। जैसा कि डॉ. जैन बताते हैं, दिल का भविष्य कैथ लैब या इमरजेंसी रूम में नहीं लिखा जाएगा, बल्कि हमारे रोज़मर्रा के जीवन में।

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