देहरादून। भारतीय वानिकी अनुसंधान और शिक्षा परिषद, देहरादून नेविश्व बैंक द्वारा वित्तपोषित पारितंत्र सेवाएं सुधार परियोजना के तहत उपयुक्त रणनीतियों/फ्रेमवर्क को विकसित करने के लिए कृषि वानिकी पर दो दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया है और पर्यावरण से संबंधित राष्ट्रीय लक्ष्यों और अंतर्राष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को प्राप्त करने के लिए देश में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए बाधाओं और चुनौतियों को दूर करने के लिए भारत सरकार को नीतिगत जानकारी प्रदान की गई। कार्यशाला में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय संगठनों, भारत सरकार के प्रमुख मंत्रालयों, राज्य के वन विभागों, देश के वानिकी और कृषि अनुसंधान संस्थानों, गैर-सरकारी संगठनों, विश्वविद्यालयों, लकड़ी आधारित उद्योगों के प्रतिनिधियों और किसानों ने भाग लिया और अपने अनुभव साझा किए। स्थायी भूमि और पारितंत्र प्रबंधन के लिए कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए अनुसंधान के परिणामों, अनुभवों और सर्वाेत्तम प्रणालियों को कार्यशाला के दौरान साझा किया गया। देश में कृषि वानिकी को बढ़ावा देने के लिए विशेषज्ञों द्वारा 24 प्रस्तुतियां दी गईं। प्रगतिशील किसानों और लकड़ी आधारित उद्योगों के प्रतिनिधियों ने भारत में कृषिवानिकी को बढ़ावा देने के अवसरों और बाधाओं पर पैनल चर्चा में भाग लिया। उन्होंने कृषि वानिकी प्रथाओं को अपनाने और बढ़ाने में अपने अनुभव और चुनौतियों को साझा किया है।
दो दिनों के विचार-विमर्श और अनुभव साझा करने के बाद, राष्ट्रीय कार्यशाला ने कृषिवानिकी को बढ़ावा देने के लिए विभिन्न कृषि जलवायु क्षेत्रों के लिए कृषि वानिकी प्रजातियों की गुणवत्ता रोपण सामग्री की उपलब्धता, नीतियों के युक्तिकरण और कृषि वानिकी के विकास के लिए नियामक व्यवस्थाओं के संबंध में और कृषि वानिकी, प्रमाणन ढांचा और कृषि वानिकी उत्पादों के लिए बाजार तंत्रविकसित करने और व्यावहारिक सिफारिशों को अंतिम रूप दिया है।
अरुण सिंह रावत, महानिदेशक, भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद् और डॉ अनुपम जोशी, वरिष्ठ पर्यावरण समाजवादी ने राष्ट्रीय कार्यशाला के समापन सत्र की अध्यक्षता की औरकार्यशाला के सफल आयोजन हेतु समस्त विशेषज्ञों, प्रतिनिधियों और आयोजकों के योगदान की सराहना की। यह भी कहा की कार्यशाला की संस्तुतियॉ कृषि वानिकी को बढ़ावा देने में अहम योगदान प्रदान करेंगें, जो कि देश के हरित आवरण को बढ़ाने, किसानों की आय में वृद्धि एवं राष्ट्रीय व अंतराष्ट्रीय प्रतिबद्धताओं को 2030 तक पूर्ण करने में सहायक सिद्ध होंगें।