देहरादून। आर्यसमाज मंदिर नत्थनपुर देहरादून में महर्षि दयानन्द सरस्वती को महाशिव रात्रि के दिन वैचारिक सत्य क्रान्ती का बोध हुआ था। महापुरूषों के जीवन में युग परिवर्तन की क्रान्ती की घटनाऐं होती रही है। उनका सत्संग का विशाल कार्यक्रम यज्ञ भजन उपदेश द्वारा किया गया।
इस अवसर पर पंडित उम्मेद सिंह विशारद ने प्रवचन में कहा कि महर्षि दयानन्द का बचपन का नाम मूल शंकर था वह उच्च कोटि के ब्राहमण थे, महाशिवरात्रि के दिन उन्होंने व्रत रखा और पिता ने कहा पुत्र रात्रि बारह बजे तक जागरण करने से शिव के साक्षात दर्शन होंगे, जिज्ञासा से मूल शंकर रात्रि जागरण करता रहा, किन्तु शिव के दर्शन तो क्या होने थे, किन्तु चारों ओर से चूहे निकल आए और प्रसाद झूठा करके उछल कूद करने लगे। मूलशंकर की आत्मा में एक विचार उत्पन्न हुआ कि जो शिव चूहों से भी अपनी रक्षा नहीं कर सकते वो हमारी रक्षा कैसे करेंगे। बस मूर्ती पूजा से विश्वास उठ गया और यही घटना संसार में वैचारिक अन्धविश्वास को मिटाने में मील का पत्थर बनी। आगे चलकर महर्षि दयानन्द ने तमाम धार्मिक, सामाजिक रूढ़ी परम्पराओं को समाप्त करने का अभूतपूर्व कार्य किया।
इस अवसर पर प्रधान धनीराम चौथानी, उपप्रधान रमेश चन्द्र भारती, मंत्री संदीप आर्य, चमनलाल, मदनराम, घनश्याम आर्य, एसएस राना, दिनेश पुरी पदीराम आर्य, अनिल गोस्वामी और रणजीत राय कपूर, रूकमणी देवी, निकिता पुरी, प्रीति आर्य, कमला देवी, प्रेेमवती देवी, जमुना दवेी, पुष्पा देवी और कमला देवी आदि उपस्थित रहे।