युवाओं और सहकारी आंदोलन का स्वर्णिम भविष्यः संघाणी

देहरादून। अध्यक्ष एनसीयूआई, इफको और गुजकोमासोल दिलीप संघाणी का कहना है कि भारत में सहकारी आंदोलन को नई दिशा देने और युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर सृजित करने के उद्देश्य से सरकार ने ‘त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय’ की स्थापना का प्रस्ताव रखा था। अब यह सपना साकार हो चुका है, क्योंकि त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय विधेयक को लोकसभा और राज्यसभा दोनों ने पारित कर दिया है।
इस विधेयक के पारित होने के साथ ही, यह विश्वविद्यालय न केवल सहकारी शिक्षा, अनुसंधान और प्रशिक्षण को बढ़ावा देगा, बल्कि सहकारी क्षेत्र को अधिक पेशेवर और प्रभावी बनाने में भी का भरोसा मदद करेगा। भारत में सहकारी आंदोलन का इतिहास काफी पुराना है, लेकिन इसके विकास की गति अपेक्षाकृत धीमी रही है। सहकारी संस्थाएँ अक्सर पेशेवर प्रबंधन की कमी, नवीनतम तकनीकों की अनुपस्थिति और प्रभावी नेतृत्व के अभाव में संघर्ष करती रही हैं। त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय इन सभी समस्याओं का समाधान प्रस्तुत करेगा और सहकारी क्षेत्र को एक स्वर्णिम युग में प्रवेश करने में सहायता करेगा। भारत में सहकारी आंदोलन की शुरुआत औपनिवेशिक काल में हुई थी। 1904 में सहकारी समितियों से संबंधित पहला कानून लाया गया, जिसके बाद इस आंदोलन को एक संरचित रूप मिला।
आज, भारत में सहकारी समितियाँ कृषि, बैंकिंग, डेयरी, आवास, उपभोक्ता वस्तुएं और अन्य कई क्षेत्रों में कार्यरत हैं। अमूल, इफको, कृभको जैसी संस्थाएं सहकारी आंदोलन के सफल उदाहरण हैं। हालांकि, सहकारी क्षेत्र की बढ़ती चुनौतियां, जैसे डिजिटल तकनीक का अभाव, प्रतिस्पर्धा में पिछड़ना, और व्यावसायिक कौशल की कमी, इसके सतत विकास में बाधा बन रही हैं। इन समस्याओं के समाधान के लिए त्रिभुवन सहकारी विश्वविद्यालय की स्थापना की जा रही है।