हरिद्वार डेस्क। जूना अखाडा के श्री अवधेशानंदजी के निमंत्रण पर श्री मोरारी बापू जी ३ अप्रैल से ११ अप्रैल तक कुम्भ की पावन बेला में हरिहर आश्रम, कनखल, हरिद्वार में ५८५वीं रामकथा कह रहे हैं।
परम पावनी मॉं गंगाके पावन तट पर,परम पावन कुंभ के पर्व पर पावन हरिहर आश्रम की पावनी प्रवाही परंपरा पर पूर्णाहूति के दिन कथा प्रारंभ पर महामंडलेश्वर आचार्य अवधेशानंदगिरिजी ने कृतग्यता का भाव प्रगट करते हुए बताया कि धन्यता हो रही है। कथा ही राम है,भगवान है। कथा सुनी नहि जाती,पीयी जाती है,कानों से। ये अवर्णनीय,अकथनीय है। कथा द्रष्टाको अपने स्वरुप में लौटाती है। एक ही ब्रह्म ये कथा का फल,ब्रह्म की पारमार्थिक सत्ता की अनुभूति करवाती है। जो प्रारब्ध में पारमार्थिक फल पैदा करें वो कथा है।
जल, आकाश, वायु की तरह। आप वही हो जाते हो जो हैं। विवेकरुपी कांटे से संसार रुपी कांटा निकालने को सिखाती है। हरि कथा ही कथा है बाकी सब व्यर्थ व्यथा है। बापुं में बालमिक बसे हैं,तुलसि रोम-रोम में है। ये टीनाभाइ (कथा यजमान परिवार), परमार्थ निकेतन आश्रम के स्वामि चिदानंदजी, रामकृष्ण आश्रम के दयाकृपा नंदजी महाराज, राजेश्वरानंदजी, दयानंदजी, अपूर्वानंदजी, मीरापुरीजी आदिकी उपस्थितिमें धन्यता और कृतग्याता का भाव जताया। बापु ने बताया की रावण वैश्विक समस्या है और हनुमान वैश्विक समाधान है। इश्वर पानी न बनाये तो प्यास पैदा करने का अधिकार नहिं, भूख देने से पहले खूद अन्न के रुप में आ जाते है। हमारे जैसे संसारीओं को समस्या हो उससे पहले ही वो बंदर, सुंदर, अंदर, बाहर, भितर, दिन, रात, प्रगट, अप्रगट समाधान बनके आ जाता है, जैसे अशोकवृक्ष के उपर हनुमान आ गये वैसे।
राम ने विभिषण के कहने पर समुद्र के तट पर तीन दिन अनशन किया। फिर समुद्र केतु की कथा सुनायी। यहां प्ररणतपाल, मखपाल, कुलपाल, कुटुंबपाल, धह्मपाल, नृपपाल, सेतुपाल आदि पाल संबंधित शब्द के बारेमें बताया। ये हरिद्वार हरि और हर को जोड़ने का सेतु ही तो है। फिर सेतुबंध रामेश्वर का स्थापन, राम रावण युध्ध, पुष्पक आरुढ हो के अयोध्या गमन, सबको एक एक को मिले और वसिष्ठ मुनि के हाथों राम को राजतिलक, सत्ता का सिंहासन खुद सत के पास आया।
हरिद्वार में जो कुछ है सब रामचरित मानस में भी है जैसे हरिद्वार में गंगा है, पहाड है, मानस में भी कामद गिरि, विंध्यगिरि, सुमेरु, चित्रकूट आदि पहाड है, तरमगाइ है, नीलधारा है, परमार्थ ही परमार्थ है, सब कुछ रामचरित मानस में है इसलिये रामचरित मानस स्वयं जंगम हरिद्वार है। रामकथा का सुकृत यहां कुंभ में आये सभी संत, महंत, महामंडलेश्वर, सभी लोग को अर्पित करते हुए बापु ने बताया की ये सुफल सब का आरोग्य अच्छा करें ये महामारी से छूटकारा पायें।