आज अगर महिलाओं की स्थिति की तुलना सैकड़ों साल पहले के हालात से की जाए तो यही दिखता है कि महिलाएं पहले से कहीं ज्यादा तेज गति से अपने सपने पूरे कर रही हैं।
महिलाओं को अगर पुरुष के कंधे से कंधा मिलाकर चलने दिया जाए तो परिवार, समाज और संपूर्ण राष्ट्र निर्बाध प्रगति की राह पर आगे बढ़ता है। सामाजिक परिवर्तन समाज में महिलाओं की स्थिति को बदले बिना नहीं लाया जा सकता।पर वास्तव में देखा जाए तो महिलाओं का विकास सभी दिशाओं में नहीं दिखता है, खासकर ग्रामीण इलाकों में। अपने पैरों पर खड़ी होने के बाद भी महिलाओं को समाज की बेड़ियां तोड़ने में अभी भी काफी लंबा सफर तय करना है। आज भी समाज की भेदभाव से भरी नजरों से बचना महिलाओं के लिए बेहद मुश्किल होता है। ऐसा लगता है की पुरुष और महिला के बीच की इस खाई को भरने के लिए अभी काफी वक्त लगेगा।
ग्रामीण क्षेत्रों में महिला पिछड़ेपन का एकमात्र कारण सही शिक्षा प्रबंध का न होना है। गांव में पुरुष भी अपनी जिंदगी का एकमात्र लक्ष्य यही मानता है कि उसे सिर्फ दो वक्त की रोटी का जुगाड़ करना है। ऐसे माहौल में पुरुषों से महिला सशक्तिकरण की उम्मीद करना बेकार है। महिलाओं को जरूरत है कि वे अपनी क्षमता और व्यक्तित्व को पहचानें और सही दिशा में साहस के साथ प्रयास करें। सरकार को ज्यादा से ज्यादा योजना महिलाओं के विकास लिए चलानी चाहिए। ये बदलाव तभी संभव हैं, जब समाज एक साथ खड़ा होकर सकारात्मक रुख के साथ काम करे।